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हमारा उद्देश्य

डिजिटल मीडिया के इस आधुनिक युग में जहां एक ओर वर्चुअल कंटेंट्स का वर्चस्व है यानी लोगों की पहली पसंद ऑडियो-विजुअल माध्यम बन चुके हैं, हमने लेखनी को प्राथमिकता दी है, इसका तात्पर्य यह नहीं कि हम न्यू वेब जर्नलिज्म को छोड़कर उसी पुराने पारंपरिक संचार माध्यम के दौर में जी रहे हैं बल्कि इसका मतलब यह है कि चाहे माध्यम जितना भी पुराना हो गया हो लेकिन यह वो माध्यम है जो आज भी अपने प्रमाणिकता के कसौटी पर खरा दिखाई देता है। साथ ही इसका दस्तावेजीकरण आसान है हमने उंगलियां स्क्रीन पर दर्जनों बार स्क्रोल करने के बजाय फिर से कलम घिसना शुरू किया है।

भारत जिसका एक-एक पत्थर अलग है, अलग-अलग शाखों पर अलग-अलग तरह के पत्ते उगते हैं, कई कुर्सियों पर कई विषम चेहरे विराजमान है। नीतियों में अनैतिकता के बावजूद भी हम जिस विकसित और महान भारत की कल्पना करते आए हैं, विश्व के सबसे बड़े इस लोकतांत्रिक देश में जहां लोकतंत्र की कई परिभाषाएं हैं हम अपनी लेखनी के द्वारा किसी बदलाव की उम्मीद नहीं करते।

भारत जैसे देश में जहां आमतौर पर सभी मीडिया संस्थान स्वयं को एक क्रांति मानकर स्थापित होती हैं लेकिन धीरे-धीरे पता नहीं वह अपनी आग बेचकर कब घी खरीद कुछ तथा कथित उद्योगपतियों और राजनेताओं की मालिश करने लगते हैं। यह शोध का विषय है लेकिन हमारा उद्देश्य घी खरीदना बिल्कुल नहीं है।

हम अपने लेखनी से किसी को भी इंसाफ दिलाने जैसा  दावा नहीं करते क्योंकि आज के इस दौर में न्याय मिलना ईश्वर से मिलाने के समान है और हम ईश्वर का कारोबार नहीं करते।

हमारा काम किसी भी राजनीतिक बाज के उड़ते हुए पंख गिनने का बिल्कुल भी नहीं है ना ही किसी उद्योगपति हाथी के पैरों तले कुचले गए मजदूरों की तनिक भी चिंता का  शौक।

आप अपने विवेक के अनुसार हमारे द्वारा लिखे गए लेख, कविताएं, व्यंग, शोध और अन्य साहित्यिक रचना को आज के दौर में डिजिटल गार्बेज की श्रेणी में रख सकते हैं।

हमारा विज़न

हमने जब से देखने, सोचने, समझने और हालातो पर नीर बहाने की क्षमता पाई उस समय से ही हमारी आंखें पथराई हुई हैं।

जो भी नियम और कानून व्यवस्था इंसानियत के खिलाफ बर्बरता पूर्वक सामाजिक अराजकता फैलाती रही हैं हम उन्हें लाल आँखें दिखाकर उन पर साहित्यिक पथराव और कागजी लोहा लेना चाहते हैं। यही हमारे इस वेबसाइट का विजन है।

हम गोदी नहीं क्योंकि हमारे पास बैठने के लिए पूरी पृथ्वी है हम बिकाऊ नहीं क्योंकि हम मानते हैं कि पूरा आसमां हमारा है। हम संविधान पर गहरी आस्था रखते हैं और यही हमारे होने का मूल है लेकिन आज इसपर फफूँद नहीं बल्कि बरगद उग आए हैं जिनकी जड़ें काटना आवश्यक दिखाई देता है।

हालांकि हमने भाषा ज्ञान होने के बाद कुछ किताबें पढ़ी है, जिससे कुछ तथ्य जुटाए जा सकें, हमने बुजुर्गों से कहानियाँ सुनी हैं जिससे इतिहास का ज्ञान हो सके।

हम दावा करते हैं कि हमने विश्वविद्यालयों से कुछ भी नहीं सीखा, हालांकि फीस की कुछ रसीदें जमा की है। कॉलेज पहुँचते ही शिक्षाविदों ने कहा- चुनौतीपूर्ण पेशे में आपका स्वागत है,और हमने चुनौती स्वीकार कर ली।

जब कभी हमारे लेख पढ़ कर आपकी आंखों में धूल चला जाए तो उन्हें अलग-अलग अखबारों और टीवी चैनलों के माध्यम से धो लीजिएगा।

हमारी टीम

Vikas Chand Sharma

editorial director

Ram Babu

editor

Sachin Kumar

sub editor

Akshay Kumar

sub editor

Suman Mahto

Content head