मेरे कमरे में हैं आईना और अखबार…

कविताएं

राम बाबू

1/2/20251 मिनट पढ़ें

मेरे कमरे में हैं दो हथियार, दोनों हैं बेकार- आईना और अखबार

यूं तो आईना दिखाता है मेरे चेहरे का सच और समाज का अखबार,

लेकिन दोनों ही नहीं दिखाते पर्दे का यथार्थ, आईना और अखबार

दोनों ने बना रखे हैं अपने-अपने औजार, आईना और अखबार

चेहरा पहनता है मुखौटे, अखबार को छापता है नोट, राजनीति और तलवार

मेरे कमरे में है एक आईना और कई अखबार

जैसे मैं बदलता हूं चेहरा, सच को बदलते हैं अलग-अलग अखबार, अपने आवश्यकता अनुसार

मेरे कमरे में हैं दो खिलौने, आईना और अखबार

दोनों से ही खेलता हूं दिल बहलाने को आंखमिचौलीयां, अलग-अलग रंगों से रंगता हूं आईना,

और शब्दों के हेर-फेर से लिखता हूं अखबार

लेकिन दुर्दशा ये कि हर दिन सुबह होते ही देखता हूं, आईना और अखबार

छिपाता हूं चेहरे का दाग आईना देखकर, और समाज का अंधकार, लिखकर अखबार

फिर कई बार सोचता हूं जितना जल्दी हो तोड़ दूं आईना और....फाड़ दूं अख़बार

मेरे कमरे में हैं मैं, आईना और अखबार

-राम बाबू