कभी ठहरना
कविताएं
राम बाबू
उसे जब पहली बार देखा...
सब ठहर गया...
कई बार ठहर-ठहर कर सोचा, ठहर जाऊं
पर ठहर ना सका...
पास आते-आते फिर एक दिन वो ठहर गया
अब ठहरे हैं कुछ ख़त, ख्याल और खामोशियां
ठहर कर रह जाते हैं कुछ किस्से
ठहरे हुए लोगों की कहानियों में
जो हो ठहरना कभी
तो सोच कर ठहरना...
चाहें हो ठहरना आंखों में
राहों में या फिर...यादों में...
-राम बाबू