और फिर कविता अधूरी रह जाएगी...

कविताएं

राम बाबू

1/2/20251 मिनट पढ़ें

आज फिर एक अर्से बाद कलम लेकर बैठा हूं

नहीं मालूम यह रात कब दिन में बदल जाएगी

और फिर कविता अधूरी रह जाएगी...

मुझको भी है मालूम

किसी रोज मेरी कलम तोड़ दी जाएगी

और फिर कविता अधूरी रह जाएगी...


तुम्हारी यादें मेरे भीतर हिज़्र की दीवार उठाएगी

अश्कों से कागज भींग जाएंगे

और फिर कविता अधूरी रह जाएगी...

इन गर्मियों के भरी दुपहरी में,

लगा गया कोई बंजर में, उम्मीद का एक फूल

ये फूल भी बसंत से पहले मुरझा जाएगी

और फिर कविता अधूरी रह जाएगी...

जब रिश्तों ने छोड़ दिया साथ,

और तुम भी नहीं रहे पास

तो रह गए कई ख्वाब अधूरे,

अब अधूरापन जिंदगी की आखिरी सांस तोड़ जाएगी

और फिर कविता अधूरी रह जाएगी...

-राम बाबू