शीशे के इस पार, शीशे के उस पार…
कविताएं
राम बाबू


शीशे के इस पार, पांच सितारा होटलों और रेस्टोरेंट में,
हैं कई स्वादिष्ट व्यंजन, लोगों के पास
भूख से मरते बेटे के लिए देख रहा है असहाय पिता,
एक निवाले को, शीशे के उस पार
शीशे के इस पार, एयर कंडीशन गाड़ी में कोई है सवार,
एक मजदूर पसीने से लथपथ रेंगते हुए
खींच रहा है पूंजीपति की साख, शीशे के उसे पार
शीशे के इस पार ऊंची इमारत के अंदर कर रहा है कोई, कंप्यूटर स्क्रीन पर व्यापार
जान पर खेलकर, रस्सी से झुलकर उसी शीशे पर जमी धूल को कर रहा है
साफ एक मजदूर शीशे के उसे पार
शीशे के इस पार, ऊपर आसमान में, हवाई जहाज पर
सुनाई देता है इंजन का शोर
बैलों की घंटियां सुनाई देती है, गांव की कच्ची सड़कों पर, बैलगाड़ियों में,
शीशे के उस पार
शीशे के इस पार के लोग, देख सकते हैं शीशे के उस पार
लेकिन शीशे के उस पार के लोग, नहीं देख सकते शीशे के इस पार,
पर शीशे के इस पार के लोग, नहीं देखते शीशे के उसे पार
अपारदर्शी शीशे में नहीं है जीवन की सच्चाई,
जब भी चुनना हो शीशा, तो चुनना पारदर्शी ताकि, देख सको वास्तविकता
शीशे के इस पार और शीशे के उसे पार
इसलिए होना चाहता हूं मैं, शीशा पारदर्शी,
ताकि देख सकूं भीतर भी और... शीशे के उस पार
-राम बाबू